Manifesto
ये सिर्फ मेरे ‘विचार’नहीं, बल्कि मेरी ‘घोषणायें’ हैं; अर्थात् मैं स्वयं को सिर्फ वह ‘विचारक’ नहींमानता, जो कमरे में बैठकर चाय की प्याली में तूफान उठाये, बल्कि मैं यह मानता हूँकि अगर मुझे अवसर मिला, तो मैं इस देश को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली बनाकरदिखा सकता हूँ. यह भी स्पष्ट करना उचित होगा, कि ये बातें मेरे लिये कोई पत्थर कीलकीर नहीं हैं- इनमें परिवर्तन भी सम्भव है- नदी में बहते जल के समान. नदी का बहताजल परिवर्तनशील तो होता है, मगर दो किनारों के अन्दर. मेरे लिये दो किनारे हैं-एक, देश को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली बनाना; दो, देश की आम जनता की भलाई. तिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी समृद्ध हो, जब किसी देश के युवा मस्तिष्क से प्रतिभाशाली, शरीर से बलिष्ठ हों और उनके ह्रदय उत्साह से भरे हों, जब किसी देश में वैज्ञानिक, कलाकार और खिलाड़ियों को बराबर और समुचित सम्मान मिले, जब किसी देश के व्यापारी, उद्योगपति और नौकरीपेशा ही नहीं दस्तकार, मजदूर और किसान भी सुख से जियें, जब कोई तरक्की तो करे मगर इसके लिए प्रकृति को क्षति न पहुँचाये और न ही उससे दूर चला जाए, जब किसी देश की सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत हो कि कोई देश उसकी तरफ़ आँखें न तरेर सके, और इन सबसे बड़ी बात- जब किसी देश के नागरिक देशभक्त, ईमानदार और साहसी हों, तो क्या शक है कि वह देश- दुनिया का सबसे खुशहाल देश होगा!