Manifesto
मैं अपने विचार व दृष्टि आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ :- 1. क्या आवश्यकता है : जनप्रतिनिधि जनता के बीच में रहे, पद पर आते ही जनप्रतिनिधि जनता से ही दूर हो जाता है, यहीं से समस्या शुरू होती है। जनप्रतिनिधि जनता के साथ रहेगा तो जनता के मुद्दों को जान व समझ पायेगा, और मुद्दों की समझ के साथ ही समस्याओं का समाधान निकाल पायेगा। 2. जनप्रतिनिधि कैसा हो: दिल्ली में बैठी सरकार गाँव गरीब के उत्थान के लिए यदि कोई अच्छी योजना बनाती है, तो इसका क्रियान्वयन सरकारी प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। परन्तु मेरी समझ से उस प्रशासन में कई सारी खामियां हैं, जिनके चलते अच्छी से अच्छी योजना कागजी होकर रह जाती है। यदि कोई व्यक्ति जो इन योजनाओं को कागजी मात्र होने से बचा सकता है तो वह जनप्रतिनिधि है। उसे सोये हुए प्रशासन को जगाना चाहिए। यदि मुझे मौका मिले तो मैं चाहूंगा कि प्रशासन को साथ लेकर गांवों व शहरों में, निष्चित समयान्तराल पर अपने क्षेत्र की जनता के अलग अलग वर्गों (किसान, जवान, छात्र, महिला, युवा, आदि) के साथ बैठकर, उन्हें सरकार की योजनाओं की जानकारी देकर कैसे योजनाओं का लाभ लिया जा सकता है ये बताना, और अधिक से अधिक जरूरतमंद लोग लाभार्थी बनें यह सुनिश्चित करने का प्रयास करूंगा। 3. पलायन की मार झेलता उत्तराखण्ड : उत्तराखंड के गांवों से प्रतिदिन लगभग 150 लोग पलायन कर रहे हैं, सैकड़ों गाँव खाली हो चुके हैं, पहाड़ों में पहाड़ी बोली बोलने वाले खत्म हुये जा रहे हैं। पलायन के जिम्मेदार मुद्दे रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा मुख्य हैं। अब जब सरकारी नौकरी सभी को नहीं दी जा सकती है, पारम्परिक खेती पहाड़ी किसानों के लिए मुनाफा नहीं दे पा रही है, तब कैसे रुके पलायन:- • आधुनिक तकनीकी पर आधारित व गैरपरम्परागत खेती के विकल्प चुनकर हर पट्टी में एक या दो सफल मॉडल कृषि फार्म (एलोवेरा फार्म, जड़ी-बूटी फार्म, सब्जी फार्म, डेरी फार्म, फल फार्म, कुक्कुट फार्म, बकरी फार्म, जलकृषि फार्म आदि) बनाने की जरूरत है, इससे पूरी पट्टी में एक माहौल पैदा होगा कि ऐसा संभव है। • पहाड़ों में मसाले, आटे, चावल, रोज की जरूरत की हर चीज बड़ी कम्पनियों द्वारा निर्मित मैदानी क्षेत्रों से आयात होती है, परन्तु इनमें से बहुत सारे उत्पाद ऐसे हैं जिनको पहाड़ों में निर्मित कर कम कीमत पर बेचा जा सकता है (जैसे- मसाले, साबुन, पैक्ड वाटर, आलू चिप्स, केला चिप्स, फलों के रस, मोमबत्ती, अगरबत्ती, पेपर प्लेट, पेपर कप, टेबल, कुर्सी, दुग्ध उत्पाद, बिस्कुट, नमकीन, दालें आदि)। मुझे लगता है इन कार्यों के लिए कोई अलग से बजट की आवश्यकता नहीं है, केवल युवा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। रोजगार के कारण हो रहा पलायन ऐसे कम किया जा सकता है। 4. उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाएँ : उत्तराखण्ड में पलायन का बड़ा कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का अपने निम्न स्तर पर होना भी है, पहाड़ों में अस्पतालों की उपलब्धता पर भी सवाल है, जो अस्पताल हैं उनमें डॉक्टर की उपलब्धता नहीं है, सुविधाओं की गुणवत्ता बिल्कुल अच्छी नहीं है। मेरे अनुसार निजी क्षेत्र के अस्पतालों की स्थापना के विषय पर बल दिया जा सकता है, परन्तु सवाल यह है कि निजी क्षेत्र के लोग तब ऊपर जाएंगे जब सड़क व एयरपोर्ट की कनेक्टिविटी हो, और निजी क्षेत्र के डॉक्टरों के लिए आधुनिक सुविधाएं पहाड़ पर मौजूद हों। इस तरह का प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त यदि मैं व्यापक रूप में स्वास्थ्य के विषय पर बात करूं तो वैसे अच्छा स्वास्थ्य अनेक कारणों पर निर्भर करता है, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण है हमारा भोजन, यदि हम यह सोचें कि डॉक्टर की महँगी दवा मात्र से हम स्वस्थ्य रह सकते हैं तो यह एक काल्पनिक बात लगती है, इससे अधिक महत्वपूर्ण है हम जो भोजन खा रहे हैं उसे खाने योग्य कैसे बनाएं ? आज स्थिति यह है कि शुद्ध व प्राकृतिक रूप में भोजन की प्राप्ति असम्भव है, क्योंकि किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए बेहिसाब रसायन प्रयोग कर रहा है, और भोजन प्रसंस्करण करने वाले भोजन की आयु बढ़ाने के लिए जरूरत से ज्यादा रसायन मिला रहे हैं। ऐसे में आवश्यकता है गुणवत्तापूर्ण भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की, इसके लिए जरूरत है किसानों को जागरूक करने की व भोजन प्रसंस्करण व रसायनों के प्रयोग के सम्बन्ध में ठोस नियम बना कर उनका पालन करवाने की, और जितना सम्भव हो सके उतना प्राकृतिक भोजन की तरफ जोर देने की। एक जनप्रतिनिधि को अपने क्षेत्र में इस ओर जागरुकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। 5. कैसे सुधरे सरकारी शिक्षा : वैसे तो देश में शायद ही कहीं सरकारी शिक्षा की स्थिति अच्छी हो। उत्तराखण्ड में भी शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। सरकारी शिक्षा को पूरी तरह से सुधारने के लिए सरकार द्वारा बड़े साहसिक कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। परंतु यदि मैं जनप्रतिनिधि हूँ तो अपने क्षेत्र में स्वप्रेरित अध्यापकों का चयन करके उनके साथ काम करके कुछ ऐसे सरकारी विद्यालय तैयार करवाना चाहूंगा जो आदर्श विद्यालय के रूप में विकसित हो सकें, उन विद्यालयों में सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं देकर उन्हें अच्छे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। और यदि प्रत्येक 8-10 गांवों के बीच में यदि ऐसा एक विद्यालय विकसित हो जाये तो बहुत हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। कुछ अन्य बिंदु जिनके आधार पर मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था को तैयार करना चाहूँगा। •शिक्षा ऐसी हो जो हमें जमीनी स्तर के समाज से तोड़े ना बल्कि जोड़े। •शिक्षा ऐसी हो कि हम केवल सवाल पूछना ही ना सीखें बल्कि समाधान भी दे पायें। •शिक्षा ऐसी हो कि हम सम्पूर्ण समाज का चिंतन करें ना कि केवल स्वयं के विकास की बात सोचें। •शिक्षा ऐसी हो जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का ज्ञान दे व आधुनिकता में तज्ञ करे। •शिक्षा ऐसी हो जो हमारी तर्कशक्ति बढ़ाये। अंततः शिक्षा वह हो जो हमें अच्छा मनुष्य बनाये। 6. युवा जागेगा तो भारत की जय होगी : सच है जिस देश का युवा जाग गया तो उस देश का भाग्योदय निश्चित है। अपने देश में 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। और इस जनसंख्या के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार नहीं बल्कि उचित मार्गदर्शन की है। स्थिति यह है कि युवा इंजीनियरिंग करने के बाद सोचता है कि उसे संगीत सीखना चाहिए, अब ऐसी स्थिति में वह क्या कर पायेगा? यह एक प्रश्न है। यदि युवा को उचित मार्गदर्शन मिल जाये तो उसकी स्थिति सुधरेगी वह एक बहुमूल्य नागरिक बनेगा और देश के विकास में योगदान देगा। इस विचार को संभव बनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था को सदृढ़ करने की आवश्यक्ता है, परन्तु मैं अपने स्तर से मार्गदर्शन कार्यक्रम शुरू करना चाहता हूँ, जिसमें हम कक्षा 6 वीं से ऊपर के छात्र का मार्गदर्शन करना चाहते हैं, छात्र को व्यवहारिकता का ज्ञान देना चाहते हैं, छात्र को पता होना चाहिए कि उसके भीतर का वह गुण क्या है जिसे वह निखारेगा तो सितारा बनकर चमकेगा और उसकी चमक समाज को रोशन करेगी। इस कार्यक्रम में छात्रों के साथ माता पिता को भी सम्मिलित करने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत में माता पिता ही बच्चे के जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं, पर यदि वे इस कार्य को अपने बच्चे की वास्तविक स्थिति को समझ कर करेंगे तो बच्चे के साथ साथ देश का भविष्य भी सुधरेगा। 7. पर्यावरण के सम्बंध में विचार : उत्तराखण्ड में 70% से ज्यादा भूभाग पर वन हैं, इसके बावजूद राज्य में वर्षा का चक्र सामान्य नहीं रहता है, असमय बाढ़, ओलावृष्टि के हालात बन जाते हैं। मैंने देखा है दुनिया को गंगा जैसी नदी देने वाले उत्तराखण्ड के गाँव स्वयं पानी के लिए तरस रहे हैं। मौसम में बदलाव, जंगल के दोहन, आधुनिक विकास के लिए प्रकृति के साथ किये जा रहे अनेक प्रयोगों के कारण भूमिगत जल का स्तर कम हुआ है, जिस कारण उत्तराखण्ड के गांवों में कई बार सूखे जैसे हालात बन जाते हैं। मैं चाहूँगा पर्यावरण संरक्षण पर बल देकर, आधुनिक तकनीकी से वर्षा जल संरक्षण कर, व जन जागरूकता बड़ा कर भूगर्भीय जल की मात्रा बड़ाई जाये। 8. आज भारत #Brand_India पर चर्चा कर रहा है, व सरकार द्वारा इस ओर अनेक प्रयास हो रहे हैं, यदि मैं जनप्रतिनिधि हूँ तो मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अपने लोकसभा क्षेत्र को भी एक ब्रांड के रूप में प्रचारित कर सकूँ, इसके लिए मैं उस क्षेत्र की लोककला, संस्कृति, इतिहास, प्रकृति, व अन्य पारम्परिक धरोहरों को विश्व के समक्ष रखने का प्रयास करूंगा और विश्व को अपने क्षेत्र तक लाकर अपनी धरोहरों से परिचित करूँगा। इसके साथ ही अपने क्षेत्र को एक ब्रांड बनाने के लिए, मैं प्रयास करूंगा कि देश में होने वाले सभी प्रकार के आयोजनों में मेरे क्षेत्र के खिलाड़ी, वैज्ञानिक, छात्र आदि, प्रतिभाग करें व सफल होयें। 9. मेरे मन में शहीद जवानों के परिवारों के प्रति सदैव सम्मान का भाव रहा है, मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं शहीदों के परिवारों के साथ समय बिताऊँ, उनको यह एहसास कराने का प्रयास करूँ कि उनके बेटे ने माँ भारती के सम्मान की रक्षा के लिए कितना बड़ा बलिदान दिया है, मेरी इच्छा है मैं उनके बेटे की कमी पूर्ति करने का कुछ प्रयास कर सकूँ। 10. इस तरह मैं एक आदर्श जनप्रतिनिधि की कल्पना करने का प्रयास करता हूँ। इस लेख में मैंने ऐसे सभी बड़े परन्तु सामान्य कार्यों के बारे में विस्तार से लिखा है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा चलाये गए अन्य कार्यों को भी जनप्रतिनिधि आगे बढ़ा सकता है।। धन्यवाद