Manifesto
वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए भारतीय राजनीति जिस तरह सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण के तरफ बढ़ती जा रही है वो आने वाले समय में भारत की जनता को सिर्फ एक वोट बैंक का जरिया बना के रखने की ओर अग्रसर है। राजनीति में भारत के जनता की पहचान उसके धर्म ,जाती,सम्प्रदाय, से न हो कर एक ऐसे भारतीय के रूप में होनी चाहिए जिसके विकास के लिए हर कोई बात के साथ साथ कर्म करे । जहा राष्ट्रवाद की बात करनी हो वहां राष्ट्रवाद ऐसा हो जैसे परम पूज्य स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का था ,," हम जीयेंगे तो भारत के लिए ओर मरेंगे भी तो भारत के लिए,और मरने के बाद भी यदि कोई हमारी अष्तियो को कान लगाकर सुनेगा तो एक ही आवाज आएगी " भारत माता की जय"। हम सब मिल के एक ऐसा भारत बनाये जहा तुस्टीकरण,,जाती ,,प्रजाति,,मजहब ,,समुदाय,की बात न हो कर बस विकास और भारतीयता की बात हो। और जिस दिन कर्म की राजनीति की शुरआत होगी उस दिन किसी भी भारतीय को घोषणापत्र की आवश्यकता नही होगी क्योंकि जनता अपनी समस्याओं को बहुत अच्छे से समझती है और उन समस्याओं का निराकरण औऱ उनका विकाश अगर हम राजनीति में प्रवेश के दौरान औऱ प्रवेश के बाद भी नही समझ पाए तो फिर भारत की आजादी के बाद से ले के 2019 तक के दौर में घोषणापत्र के द्वारा किस तरह की राजनीति हुई है वो हम सबके सामने है। धन्यवाद।